Volume 14 | Issue 5
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पराशरस्मृति का धार्मिक और सामाजिक महत्त्व पराशर स्मृति एक प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथ है, जो पराशरमुनि द्वारा रचित है। यह ग्रंथ धार्मिक और सामाजिक महत्त्व का स्रोत है, जिसमें व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पहलुओं के बारे में विस्तार से बताया गया है।पराशरस्मृति हिंदू धर्म के सिद्धांतों को समझने में मदद करता है। व्यक्ति के जीवन को धार्मिक और नैतिक दृष्टि से सुधारने में मदद करता है,मोक्ष की प्राप्ति के तरीकों को बताता है। विभिन्न वर्णों और आश्रमों के कर्त्तव्य और अधिकार को बताता है। वस्तुतः पराशरस्मृति मानव जीवन का सिद्धांन्तिक धर्मशास्त्र है। विना धर्म के मनुष्य मात्र का जीवन जीवन नही होता। जीवन के पुरुषार्थ चतुष्टय को प्राप्त करने के लिय पराशरस्मृति मे कर्म शास्त्रीय संहिता समग्र मनुष्यो के लिय मानवीयशास्त्र है। अतः उसका सामाजिक महत्त्व सर्वदा अनुकरणीय है। *धार्मिक महत्त्व - पराशरस्मृति में धर्म की परिभाषा और इसके महत्व के बारे में बताया गया है। इसमें कहा गया है कि धर्म का अर्थ है कर्म, जो व्यक्ति को भगवान के साथ जोड़ता है। पराशरस्मृति में विभिन्न धर्मों के बीच समानता और एकता का महत्त्व बताया गया है। इसमें कहा गया है कि सभी धर्मों का उद्देश्य एक ही है, जो है भगवान की प्राप्ति। पराशरस्मृति में कर्म, धर्म और मोक्ष के संबंध के बारे में विस्तार से बताया गया है। इसमें कहा गया है कि कर्म के माध्यम से व्यक्ति धर्म की प्राप्ति कर सकता है, और धर्म के माध्यम से व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति कर सकता है। *सामाजिक महत्त्व - पराशरस्मृति में सामाजिक न्याय और समानता के महत्त्व के बारे में बताया गया है। इसमें कहा गया है कि सभी व्यक्ति समान हैं और उन्हें समान अधिकार प्राप्त होने चाहिए। पराशरस्मृति में विभिन्न वर्गों और जातियों के बीच समानता और एकता का महत्त्व बताया गया है। पराशरस्मृति में शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण के महत्त्व के बारे में बताया गया है। इसमें कहा गया है,कि शिक्षा व्यक्ति को ज्ञान प्रदान करती है, स्वास्थ्य व्यक्ति को शक्ति प्रदान करता है, और सामाजिक कल्याण व्यक्ति को सुख प्रदान करता हैl