Volume 14 | Issue 5
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श्रम बल से किसी भी देश की उन्नति और उत्थान को परिभाषित करने की सामर्थ रखता है। किसी भी आर्थिक क्रियाकलाप में इसका सब से ज्यादा योगदान होता है। यह बात जानना जरूरी है कि क्योंकि श्रमिक कल्याण संबंधी नीति निर्माण में नीति निर्माताओं के समक्ष स्वस्थ्य कामकाजी परिवेश निर्माण करने तथा श्रम बल का कल्याण एवं उन्नति सुनिश्चित करने के मुद्दे में कड़ी दिक्कते पेश करता है। भारत देश का श्रम बाजार खुला रूप से संगठित एवं असंगठित क्षेत्र में बंटा हुआ है। देश में सिर्फ लगभग 10 प्रतिशत श्रमिक वर्ग संगठित क्षेत्र में एवं 92 प्रतिशत श्रमिक वर्ग असंगठित क्षेत्र में लगा हुआ है। संगठित वर्ग के श्रमिकों को छोड़कर निर्माण श्रमिक एवं विनिर्माण कामगार कृषि एवं मौसमी कृषि श्रमिक/ कामगारों की अपनी समस्याएं और चिन्ताएं होती है। जिनको दूर करने के लिए पुराने श्रमिक अधिनियमों में समय-समय पर संशोधन होते रहे हैं। इसके साथ ही सरकार द्वारा श्रमिकों के लिए अनेकों योजनाएं एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम चलाये जा रहे हैं। जिसके परिणाम स्वरूप ग्रामीण एवं शहरी क्षेत्रों में पुरूष कामगारों की तुलना में महिला कामगारों की संख्या में वृद्धि हुई है। भारत में अनेकों श्रम कानून होने के कारण व उनके दोहरापन को रोकने के लिए नई श्रम संहिता का निर्माण किया गया है जिसके तहत 44 केन्द्रीय अधिनियम एवं 100 से ज्यादा राज्य अधिनिमयों को 4 संहिताओं यथा मजदूरी संहिता 2019, औद्योगिक संबंधी संहिता 2020, सामाजिक सुरक्षा संहिता 2020 और उपजीविका जन्य सुरक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण संहिता 2020 में समायोजित कर दिया गया है।