IJFANS International Journal of Food and Nutritional Sciences

ISSN PRINT 2319-1775 Online 2320-7876

संत कबीर के काव्य में साधारण लोगो के समस्याओं की व्याख्या

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डॉ. मो. मजीद मियाँ

Abstract

मनुष्य की मानवता का परिचायक तत्त्व कर्म है। कर्म के आधार पर मानव अन्य समस्त प्राणियों से श्रेष्ठ है। कर्म की उच्चता के आधार पर जीव मानव बनता है, तो कर्म की निम्नता के आधार पर जीव मानवेत्तर प्राणी बन जाता है। कर्म कार्य-कारण के नियम पर आधारित व्यवस्था है । इस लिये कबीर दर्शन मानव तथा अन्य सभी प्राणियों में समान रूप से पाये जाने वाले जैविक बुभुक्षा से सम्बद्ध कर्मों में लिप्त मानव को मानवाकार होते हुए भी मानवेत्तर प्राणी मानता है। कबीर दर्शन व्यापक नैतिक व्यवस्था को ही धर्म मानता है और कर्मकाण्डों का विरोध करता है। नैतिक व्यवस्था आन्तरिक होती है, बाह्याचार से उस का कोई सरोकार नहीं होता है। मानव मात्र मानव है। धार्मिक सम्प्रदायों के अनुसार न तो वह हिन्दू है न ही मुसलमान न ही अन्य कुछ और। विभिन्न जातियाँ - उपजातियाँ चातुर्वर्ण व्यवस्था, आश्रम व्यवस्था या सामाजिक व्यवस्था को मात्र चलाने के लिये हैं। मानव का अस्तित्त्व इन सब से ऊपर है।

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