IJFANS International Journal of Food and Nutritional Sciences

ISSN PRINT 2319-1775 Online 2320-7876

हिंदी कहानियों में वृद्धों की समस्या

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Dr. Hasankhan K Kulkarni

Abstract

कलियुग में वृद्धों की रक्षा भगवान ही करना चाहिये। यह बात मैं अपने खु के अनुभव के साथ कह राहा हूँ। मैं बचपन में ऐखा था छाप्ष्टों का बडों का कितना बहुत डर था, आर था । मेरे Dror- □ाठी १०० साल की उम्र जीकर मरे। पिता, चाचा, फुफ़िया और हम सब भाई-बहन बूढों की सेवा के लिए २४ घष्ठे तयार रहते थे। एक बार मेरी दादी फ़जलनबी बिमार पड़ी थी गाँव में काई डॉक्टर, हकीम, वक्ष्य नही था। पिता, चाचा, भाई वक्ष्य का बुला लाने की काशिश कर हार मान गये थे । गाँव का तीन तरफ़ से नपि घेर ली थी। नती के पार वक्ष्य था, बारिश की वजह से नती में पानी बडने के कारण नापी पार कर के वक्ष्य आने का तयार नही था। मैं एक चिर-परिचितर्जी की सहाता से उसे खपे पर बिठा कर नाती पार कराने और सुरक्षित वापस घर का पहुँचाने का वाण किया, त वक्ष्य आगया। सुई में वा भरकर ाठी का चुब पिया, त० सुबह तक ाठी फ़िर आराम ह० गई। ठी फ़िर साल जिएगी जीकर खूब मुआ ऐकर मरी । जब भी मैं पढ्‌ने केलिए बाहर जाता था ापी के पश्य छू कर प्रणाम करता था, उसी समाय वह वृद्ध जीव जुग जुग जीने की और पढाई में कामयाब हाने की पुआ करता था यह मेरे यश की बहुत बडी प्रेणा थी, इसका महत्व मुझे आज मालूम हारहा ह०। ऐसे बुजुर्गों की पुआ से आज मैं ५२ साल पूरे कर चुका हूँ, एक सुख-चना की जिएगी जी रहा हूँ।

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